मां कूष्मांडा
कूष्मांडा :- कूष्माण्डा शब्द दो शब्दों यानि कुसुम मतलब फूलों के समान हंसी और आण्ड का अर्थ है ब्रह्मांड। अर्थात वो देवी जिन्होनें अपनी फूलों सी मंद मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया है। कहा जाता है की जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कूष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी | इसीलिए इन्हे सृष्टि की आद्य शक्ति के रूप में जाना जाता है। कुष्मांडा माता का रूप बहुत ही शांत, सौम्य और मोहक माना जाता है। इनकी आठ भुजाए हैं इसीलिए इनको अष्ट भुजा भी कहते है। इनके सात हाथो में कमण्डल, धनुष, बाण, फल, पुष्प, अमृत, कलश, चक्र, गदा है। आठ में हाथ में सभी सिद्धि को देने वाली जप की माला है।
कूष्माण्डा माता का वाहन सिंह है। कूष्मांडा मां सूर्य से सम्बंधित दोषों को ठीक करती हैं। जिन जातकों की कुंडली में सूर्य नीच का हो उन्हें मां कूष्मांडा की पूजा से लाभ होता है।
मां कूष्मांडा की कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। ये देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। ये देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए। नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है।
।। पूजन मंत्र ।।
सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।
Leave a Comment