मां शैलपुत्री
शैलपुत्री:– इस नाम का अर्थ है शैल यानि पहाड़ों की पुत्री। मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है।
मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है।
शैलपुत्री:– इस नाम का अर्थ है शैल यानि पहाड़ों की पुत्री।
पर्वतराज हिमालय के घर देवी ने पुत्री के रूप में जन्म लिया और इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। प्रकृति का प्रतीक मां शैलपुत्री जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता का सर्वोच्च शिखर प्रदान करती हैं। शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल रहता है तथा इनका वाहन वृषभ (बैल) है। मां के इस रूप को लाल और सफेद रंग की वस्तुएं पसंद होने के कारण इस दिन लाल और सफेद पुष्प एवं सिंदूर अर्पित करें और दूध की मिठाई का भोग लगाएं। मां शैलपुत्री का पूजन घर के सभी सदस्य के रोगों को दूर करता है एवं घर से दरिद्रता को मिटा संपन्नता को लाता है।
शैलपुत्री माँ की कथा:
एक बार दक्ष प्रजापति ने एक बड़ा यज्ञ करवाया। उसमे उन्होंने सारे देवताओ को यज्ञ में अपना-अपना भाग लेने के लिए निमंत्रित किया। परंतु शिवजी को उन्होंने निमंत्रित नहीं किया। जब नारद जी ने माता सती को ये यज्ञ की बात बताई, तब माँ सती का मन वहा जाने के लिए बेचैन हो गया। उन्होंने शिवजी को यह बात बताई तब शिवजी ने कहा – प्रजापति दक्ष किसी बात से हमसे नाराज़ हो गए हे, इसीलिए उन्होंने हमें जान बुजकर नहीं बुलाया, तो ऐसे में तुम्हारा वहा जाना ठीक नहीं है। यह सुनकर माँ सती का मन शांत नहीं हुआ। उनका प्रबल आग्रह देखकर शिवजी ने उन्हें वहा जाने की अनुमति दे दी।
जब माँ सती वहा पहुंची तो उन्होंने देखा की कोई भी वहा पर उनसे ठीक से या प्रेम से व्यवहार नहीं कर रहा था। केवल उनकी माता ही उनसे प्रेमपूर्वक बात कर रही थी। तब क्रोध में आकर माता सती ने उस यज्ञ की अग्नि से अपना पूरा शरीर भस्म कर दिया और फिर अगले जन्म में पर्वत राज हिमालय के पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री के नाम से जानी गई।
। पूजन मंत्र ।।
वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं, PujaSamadhaan इसकी पुष्टि नहीं करता है ।
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