- August 19, 2019
- Puja Samadhaan
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वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत या फिर वट पूर्णिमा का व्रत हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत खास माना जाता है. मान्यता है कि ये व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती है और संकट दूर होते हैं. वहीं यह भी माना जाता है कि दांपत्य जीवन में चल रही परेशानियां भी इस व्रत को रखने से दूर हो जाती हैं. यही वजह है कि सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना के साथ वट यानी बरगद के वृक्ष के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं. धार्मिक मान्यता है कि वट के वृक्ष के नीचे सावित्री के पति सत्यवान को जीवनदान मिला था. यही वजह है कि इस व्रत में वट के वृक्ष का पूजन करते हैं और इस पर सूत बांधते हैं. साथ ही वट पूर्णिमा के अवसर पर सावित्री (Savitri) और सत्यवान
वट पूर्णिमा व्रत पूजा विधि
वट पूर्णिमा व्रत के लिए महिलाएं सुबह उठकर स्नान कर नए वस्त्र पहनें और शृंगार करके निर्जला व्रत का संकल्प लेकर पूजा करें. इसके लिए सभी पूजन सामाग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर लें और पूजा की थाली को सजा लें. फिर वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करके वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और वृक्ष को हल्दी, रोली और अक्षत लगाएं. इसके बाद फल और मिठाई अर्पित करें. इसके बाद वट के वृक्ष पर सूत को लपेटते हुए इसकी परिक्रमा करें और सत्यवान-सावित्री की कथा सुनें.
वट सावित्री व्रत का महत्व
सुहागिन महिलाएं सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत करती हैं. इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा भाव से रखा जाता है. धार्मिक पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी. वहीं मान्यता यह भी है कि इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहता है और घर में सुख-समृद्धि आती है
वट पूर्णिमा की व्रत कथा
वट पूर्णिमा के दिन सत्यवान- सावित्री की कथा सुनने का विधान है। कथा के अनुसार, अश्वपति नाम के राजा की पुत्री सावित्री ने नारद जी की भविष्यवाणी जानने के बाद भी अल्प आयु सत्यवान से विवाह किया। विवाह के एक वर्ष बाद अचानक एक दिन सत्यवान लकड़ी काटते-काटते थक कर बरगद के पेड़ के नीचे सोने लगे थे। नींद से न जागने पर सावित्री को नारद जी की भविष्यवाणी याद आयी। सावित्री यमराज द्वारा अपने पति के प्राण ले जाता देख उन्हें खुद को दिए सौ पुत्रों के वरदान की याद दिलाई। सावित्री के कठोर तप और सतीत्व को देख यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए। वट वृक्ष के नीचे ही पुनः जीवित होने कारण इस दिन को वट सावित्री या वट पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं।
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