माँ ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी:– ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली | इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली | ब्रह्मचारिणी माता दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है | नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है व साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं |
ब्रह्मचारिणी माँ की कथा:
जब शैलपुत्री बड़ी हुई तब नारदजी ने उन्हें बताया की अगर वह तपस्या के मार्ग पर चलेगी, तो उन्हें उनके पूर्व जन्म के पति शिवजी ही वर के रूप में प्राप्त होंगे। शिवजी ही वर के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की तब उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। उन्होंने कई वर्ष केवल फल, फूल ही खाये, जमीन पर सोई, यहाँ तक की कई वर्षो तक कठिन उपवास रखे और खुले आसमान के नीचे शर्दी गरमी और घोर कष्ट सहे। यह देखकर सारे देवता प्रसन्न हो गए और उन्होंने पार्वती जी को बोला की इतनी कठोर तपस्या केवल वही कर सकती हे, इसीलिए उनको भगवान् शिवजी ही पति के रूप में प्राप्त होंगे, तो अब वह घर जाये और तपस्या छोड़ दे। माता की मनोकामना पूर्ण हुई और भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
।। पूजन मंत्र ।।
दधाना करपाद्माभ्याम, अक्षमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं, PujaSamadhaan इसकी पुष्टि नहीं करता है ।
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