- June 26, 2021
- Puja Samadhaan
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निर्जला एकादशी व्रत
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष पर निर्जला एकादशी है। इस व्रत के दौरान पानी का एक बूंद भी ग्रहण नहीं किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इससे 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
हिंदू धर्मावलंबियों यानी हिंदू परंपरा को मानने वालों के लिए एकादशी व्रत बहूत महत्वपूर्ण है जो इस सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु इस संसार की देख-रेख करते हैं। सनातन धर्म में भगवान विष्णु को प्रमुख देवता माना गया है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, वर्ष में कुल 24 एकादशियां मनाई जाती हैं जो प्रत्येक माह कृष्ण और शुक्ल पक्ष में पड़ती हैं।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को सर्वोत्तम माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। कहा जाता है कि महाबली भीमसेन ने इस व्रत को किया था। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ कथा का पाठ करने का भी विधान है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा, निर्जला एकादशी की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडू परिवार एकादशी व्रत श्रद्धा-भाव से करते थे, मगर भीमसेन व्रत करने में असमर्थ रहते थे। इसकी वजह यह थी की वह एक समय का खाना भी खाए बिना नहीं रह पाते थे। अपने भाईयों को व्रत करता देख उनका भी व्रत करने का मन करता था लेकिन वह मजबूर थे। वह भगवान विष्णु का निरादर नहीं करना चाहते थे इसलिए एक बार उन्होंने अपनी व्यथा महर्षि व्यास जी को बताई और इस समस्या का हल पूछा। वेदव्यास जी ने उनकी चिंता दूर करते हुए निर्जला एकादशी व्रत का महत्व बताया और कहा कि इस व्रत के नियम बेहद कठिन हैं मगर जो यह व्रत करता है उसे समस्त एकादशियों का फल मिलता है तथा उसके सारे पाप मिट जाते हैं। यह एकादशी वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच में पड़ती है और इस दिन अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है। वेदव्यास जी के कहने पर महाबली भीमसेन भी इस व्रत को करने लगे, इस एकादशी को निर्जला एकादशी, भीमसेन एकादशी, पांडव एकादशी और भीम एकादशी कहा जाता है। यह व्रत समस्त एकादशी व्रतों में सबसे कठोर है लेकिन यह व्रत करने वाले जातक को सभी एकादशियों का फल एक साथ प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी व्रत के नियम बेहद कठीन माने जाते हैं, इस दिन जल का एक भी बूंद ग्रहण नहीं किया जाता है।
निर्जला एकादशी के व्रत :
इस व्रत के नाम से ही यह पता चलता है कि इस व्रत के दौरान पानी नहीं पीना चाहिए। निर्जला एकादशी का पहला नियम है कि व्रत प्रारंभ होने से ले कर पारण करने तक पानी पीना वर्जित है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस व्रत के नियम दशमी से लेकर द्वादशी तिथि तक माने जाते हैं।
ना करें दशमी से इन चीजों का सेवन:
जानकार बताते हैं कि जो भी भक्त यह व्रत करना चाहते हैं उन्हें दशमी तिथि को लहसुन, प्याज और तामसिक भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। इस दिन सूर्यासेत के बाद से भोजन ग्रहण ना करें ताकि व्रत के दिन आपका पेठ खाली रहे और उसमें अन्न मौजूद ना रहे।
शुभ मुहूर्त में करें व्रत पारण:
हर एक एकादशी व्रत का पारण शुभ मुहूर्त पर करना लाभदायक माना गया है। इसीलिए निर्जला एकादशी व्रत का पारण भी शुभ मुहूर्त पर करें। एकादशी व्रत का पारण हमेशा हरिवासर के बाद करना चाहिए। याद रहे कि निर्जला एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के बाद ना हो क्योंकि यह वर्जित है।
व्रत के दौरान रहें शांत:
एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को शांत रहना चाहिए, इस दिन क्रोध करने से बचें। द्वादशी तिथि पर पारण करने के बाद स्नानादि कर लें फिर भगवान विष्णु की पूजा करें और भोग लगाने के बाद ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें। एकादशी व्रत पारण के बाद किसी जरूरतमंद की मदद करना तथा दान देना बहुत हितकारी माना जाता है।
दशमी तिथि पर जमीन पर सोएं:
इस व्रत का तीसरा नियम यह है कि दशमी तिथि पर व्रत करने वाले व्यक्ति को जमीन पर सोना चाहिए और एकादशी तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर तथा नित्य क्रियाओं से निवृत हो कर और स्नानादि करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। निर्जला एकादशी व्रत विधान के अनुसार, एकादशी पर लोगों को रात्रि जागरण करना चाहिए, आप रात्रि में भजन-कीर्तन भी कर सकते हैं।
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